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निदा फाजली – अब कहाँ दूसरे के ...

निदा फाजली – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

निदा फाजली – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

This chapter explores the theme of empathy and the diminishing sense of shared sorrow in today's world, as reflected in the poignant poetry of Nida Fazli.

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Class X Hindi FAQs: निदा फाजली – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले Important Questions & Answers

A comprehensive list of 20+ exam-relevant FAQs from निदा फाजली – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले (Sparsh) to help you prepare for Class X.

निदा फाजली एक प्रसिद्ध उर्दू कवि और गीतकार थे, जिनका जन्म 1938 में दिल्ली में हुआ था। उन्होंने सामान्य बोलचाल की भाषा में गहरी भावनाओं को व्यक्त करने की कला में महारत हासिल की। उनकी रचनाएँ मनुष्य के दुख और सुख को बहुत ही सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती हैं।

इस पाठ का मुख्य संदेश यह है कि आज के समय में मनुष्य दूसरों के दुख से दुखी होने की भावना खोता जा रहा है। पाठ में प्रकृति और मनुष्य के बीच बढ़ते असंतुलन और इसके परिणामों को दर्शाया गया है, जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने आसपास के लोगों और प्रकृति के प्रति कितने संवेदनशील हैं।

सुलेमान की कहानी यह संदेश देती है कि एक सच्चा राजा या नेता सभी प्राणियों की भाषा समझता है और उनके दुख में सहभागी बनता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें भी दूसरों के दुख में सहानुभूति रखनी चाहिए और उनकी मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।

पाठ में प्रकृति और मनुष्य के बीच असंतुलन का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि कैसे मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का दोहन किया है। जंगलों की कटाई, प्रदूषण और शहरीकरण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप आज हमें अनेक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है।

लेखक की माँ ने कौए के अंडे के टूटने पर बहुत दुख व्यक्त किया और इस घटना के लिए खुद को दोषी मानते हुए पूरे दिन उपवास रखा। उन्होंने इस गलती के लिए ईश्वर से माफी माँगी और प्रार्थना की। यह घटना हमें सिखाती है कि हमें सभी जीवों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

पाठ में वर्णित समुद्र के क्रोध का कारण मनुष्य द्वारा समुद्र के साथ किया गया दुर्व्यवहार था। मनुष्य ने समुद्र की भूमि पर अतिक्रमण करके उसका स्थान छीन लिया था, जिसके कारण समुद्र ने अपना क्रोध तीन जहाजों को उठाकर तीन अलग-अलग दिशाओं में फेंककर प्रकट किया।

'मस्जिद के गुंबद पर कौए का घोंसला' इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति और मनुष्य के बीच सद्भाव और सहअस्तित्व संभव है। यह दृश्य हमें याद दिलाता है कि हमें प्रकृति और उसके जीवों के साथ शांति और सम्मान से रहना चाहिए।

'दीवारों के पार' और 'दीवारों के बीच' पाठ में मनुष्य द्वारा खड़ी की गई सामाजिक और मानसिक दीवारों को दर्शाता है। ये दीवारें हमें एक-दूसरे से अलग करती हैं और संवेदनशीलता की कमी को दिखाती हैं। लेखक इन दीवारों के खतरों को उजागर करता है।

'हाथी के रोने' की घटना यह संदेश देती है कि जानवर भी मनुष्य की तरह भावनाएँ रखते हैं और दुख महसूस करते हैं। यह घटना हमें जानवरों के प्रति संवेदनशील होने और उनके साथ दया का व्यवहार करने की सीख देती है।

'बंदर का बच्चा' पाठ में मासूमियत और निर्दोषता का प्रतीक है। यह दृश्य हमें याद दिलाता है कि हमें बच्चों और निर्दोष जीवों के प्रति कोमल और संवेदनशील होना चाहिए। यह हमारी मानवता को परखने का एक मापदंड है।

'समुद्र का गुस्सा' पाठ में प्रकृति के प्रति मनुष्य के दुर्व्यवहार और उसके परिणामों की ओर इशारा करता है। यह हमें चेतावनी देता है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम हो सकते हैं और हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए।

'कौए का अंडा' पाठ में निर्दोषता और जीवन के प्रति संवेदनशीलता का प्रतीक है। यह घटना हमें सिखाती है कि हमें सभी जीवों के प्रति दया और सम्मान का भाव रखना चाहिए, चाहे वे कितने भी छोटे क्यों न हों।

'दीवारों का गिरना' पाठ में सामाजिक और मानसिक बंधनों के टूटने की ओर इशारा करता है। यह हमें बताता है कि जब तक हम इन दीवारों को नहीं तोड़ेंगे, तब तक हम एक-दूसरे के दुख में सहभागी नहीं बन सकते।

'प्रकृति का बदला' पाठ में मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ किए गए दुर्व्यवहार के परिणामों की ओर इशारा करता है। यह हमें चेतावनी देता है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम हो सकते हैं और हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए।

'मनुष्य की संवेदनहीनता' पाठ में आज के समय में मनुष्य के हृदय में दूसरों के प्रति संवेदनशीलता की कमी को दर्शाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमें अपने आसपास के लोगों और प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

'प्रकृति और मनुष्य का संबंध' पाठ में दोनों के बीच के अटूट रिश्ते को दर्शाता है। यह हमें बताता है कि प्रकृति के बिना मनुष्य का अस्तित्व संभव नहीं है और हमें प्रकृति का सम्मान और संरक्षण करना चाहिए।

'सुलेमान की कहानी' पाठ में एक आदर्श शासक की छवि प्रस्तुत करती है, जो सभी प्राणियों की भाषा समझता है और उनके दुख में सहभागी बनता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें भी दूसरों के दुख में सहानुभूति रखनी चाहिए।

'कौए का घोंसला' पाठ में प्रकृति और मनुष्य के बीच सद्भाव का प्रतीक है। यह दृश्य हमें याद दिलाता है कि हमें प्रकृति और उसके जीवों के साथ शांति और सम्मान से रहना चाहिए।

'समुद्र का क्रोध' पाठ में प्रकृति के प्रति मनुष्य के दुर्व्यवहार और उसके परिणामों की ओर इशारा करता है। यह हमें चेतावनी देता है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम हो सकते हैं और हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए।

'मनुष्य की स्वार्थपरता' पाठ में आज के समय में मनुष्य के स्वार्थी व्यवहार को दर्शाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमें अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के बारे में सोचना चाहिए और उनकी मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।

'प्रकृति का संतुलन' पाठ में प्रकृति और मनुष्य के बीच के संतुलन को दर्शाता है। यह हमें बताता है कि प्रकृति का संतुलन बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है और इसके बिना हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

'दीवारों का निर्माण' पाठ में मनुष्य द्वारा खड़ी की गई सामाजिक और मानसिक दीवारों को दर्शाता है। ये दीवारें हमें एक-दूसरे से अलग करती हैं और संवेदनशीलता की कमी को दिखाती हैं। लेखक इन दीवारों के खतरों को उजागर करता है।

'प्रकृति का महत्व' पाठ में प्रकृति के हमारे जीवन में महत्व को दर्शाता है। यह हमें बताता है कि प्रकृति के बिना हमारा अस्तित्व संभव नहीं है और हमें प्रकृति का सम्मान और संरक्षण करना चाहिए।

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