कबीर की साखियाँ जीवन के गहन सत्य और आध्यात्मिक ज्ञान को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती हैं।
कबीर – साखी - Quick Look Revision Guide
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Key Points
कबीर का जन्म 1398 में काशी में हुआ।
कबीर का जन्म 1398 में काशी में हुआ माना जाता है। उन्होंने 120 वर्ष की आयु पाई और अंतिम वर्ष मगहर में बिताए।
कबीर के समय में राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक क्रांतियाँ थीं।
कबीर का अवतरण ऐसे समय में हुआ जब राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक क्रांतियाँ अपने चरम पर थीं। वे क्रांतिकारी कवि थे।
कबीर ने साखी के माध्यम से जनमानस तक पहुँच बनाई।
कबीर ने साखी और सबद के माध्यम से जनमानस और जनभावनाओं को जन-जन तक पहुँचाया।
साखी का अर्थ है प्रत्यक्ष ज्ञान।
साखी शब्द साक्षी से बना है जिसका अर्थ है प्रत्यक्ष ज्ञान। यह गुरु शिष्य को प्रदान करता है।
कबीर ने धर्म के ढोंगों पर कड़ी चोट की।
कबीर ने एक ओर धर्म के ढोंगों पर कड़ी चोट की तो दूसरी ओर आत्मा-परमात्मा के मिलन के भावपूर्ण गीत गाए।
कबीर का मानना था कि ईश्वर एक है।
कबीर का विश्वास सर्वेश्वरवाद में था और वे मानते थे कि ईश्वर एक है, वह निराकार है।
कबीर की भाषा पूर्वी उत्तर प्रदेश की बोली थी।
कबीर की भाषा पूर्वी उत्तर प्रदेश की बोली थी। उन्होंने इसे 'पंचमेल खिचड़ी' भी कहा जाता है।
साखी का लक्षण 13 और 11 के विराम से 24 मात्रा है।
साखी वस्तुतः दोहा छंद है जिसका लक्षण 13 और 11 के विराम से 24 मात्रा है।
कबीर ने सीधे अनुभव को महत्व दिया।
कबीर ने शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा सीधे अनुभव को अधिक महत्व दिया। उनका अनुभव क्षेत्र विस्तृत था।
कबीर की साखियाँ जीवन के तत्वज्ञान की शिक्षा देती हैं।
कबीर की साखियाँ सत्य की साक्षी देते हुए गुरु शिष्य को जीवन के तत्वज्ञान की शिक्षा देती हैं।
मीठी वाणी बोलने से दूसरों को सुख मिलता है।
कबीर कहते हैं कि मीठी वाणी बोलने से दूसरों को सुख और अपने शरीर को शीतलता मिलती है।
दीपक दिखाई देने पर अंधकार मिट जाता है।
कबीर के अनुसार, ज्ञान का प्रकाश होने पर अज्ञान का अंधकार स्वतः मिट जाता है।
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है।
कबीर का मानना है कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे देख नहीं पाते।
संसार में सुखी वह है जो जागता है।
कबीर के अनुसार, संसार में सुखी वह है जो जागता है और दुखी वह जो सोता है।
अपने स्वभाव को निर्मल रखने का उपाय।
कबीर ने अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए सरल जीवन और ईश्वर भक्ति का उपाय सुझाया।
पढ़ने से पंडित नहीं, ज्ञान से पंडित बनते हैं।
कबीर कहते हैं कि केवल पढ़ने से कोई पंडित नहीं बनता, ज्ञान प्राप्त करने से पंडित बनते हैं।
कबीर की साखियों की भाषा की विशेषता।
कबीर की साखियों की भाषा में अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं के शब्दों का प्रभाव है।
साधु का अर्थ है धैर्यवान।
कबीर के अनुसार, साधु वह है जो धैर्य धारण करता है और दूसरों के लिए मीठी वाणी का प्रयोग करता है।
कबीर की साखियों का संदेश।
कबीर की साखियों का मुख्य संदेश है जीवन की सच्चाइयों को समझना और ईश्वर की भक्ति करना।
कबीर की शिक्षा का मूल आधार।
कबीर की शिक्षा का मूल आधार है सीधे अनुभव और ईश्वर के प्रति समर्पण।
मीरा के पदों में भक्ति, प्रेम और समर्पण की गहरी भावनाएं व्यक्त की गई हैं, जो कृष्ण के प्रति उनकी अटूट भक्ति को दर्शाती हैं।
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