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Kshitij - II

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद एक प्रसिद्ध हिंदी कवि, नाटककार और उपन्यासकार हैं, जिनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

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जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 में वाराणसी में हुआ था। उन्होंने काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में पढ़ाई की, लेकिन परिस्थितियों के अनुकूल न होने के कारण आगे नहीं पढ़ सके। बाद में उन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी और फारसी का अध्ययन किया।

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं - 'चित्राधार', 'कानन कुसुम', 'झरना', 'आँसू', 'लहर' और 'कामायनी'। 'कामायनी' को आधुनिक हिंदी की सर्वश्रेष्ठ काव्य कृति माना जाता है, जिस पर उन्हें 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक' दिया गया।

जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक शैली में छायावादी कविता की अत्यधिक कल्पनाशीलता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम और शैली की लाक्षणिकता प्रमुख हैं। उनके साहित्य में इतिहास और दर्शन के प्रति गहरी रुचि दिखाई देती है।

'आत्मकथ्य' कविता में जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ और अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। यह कविता छायावादी लघुता के अनुरूप ही अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए लिखी गई है। इसमें कवि ने यह बताया है कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है।

जयशंकर प्रसाद के प्रमुख नाटक हैं - 'अजातशत्रु', 'चंद्रगुप्त', 'स्कंदगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी'। ये नाटक ऐतिहासिक विषयों पर आधारित हैं और हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

'कामायनी' आधुनिक हिंदी की सर्वश्रेष्ठ काव्य कृति मानी जाती है। इसमें मनु और श्रद्धा की कथा के माध्यम से मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है। इस काव्य में छायावादी शैली की सभी विशेषताएँ मौजूद हैं।

जयशंकर प्रसाद की कहानी संग्रह हैं - 'आकाशदीप', 'आँधी' और 'इंद्रजाल'। इन कहानियों में उन्होंने मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।

जयशंकर प्रसाद के साहित्य को जीवन की कोमलता, माधुर्य, शक्ति और आकांक्षा का साहित्य माना जाता है। उनके साहित्य में छायावादी कविता की अत्यधिक कल्पनाशीलता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम और शैली की लाक्षणिकता प्रमुख हैं।

'आत्मकथ्य' कविता में कवि ने कहा है कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और रोचक मानकर लोग सराहना करें। इस कविता में एक तरफ कवि द्वारा यथार्थ की स्वीकृति है तो दूसरी तरफ एक महान कवि की विनम्रता भी।

जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली में छायावादी लघुता के अनुरूप ही अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए लंबे, सुंदर और नवीन शब्दों और बिंबों का प्रयोग किया गया है। इन्हीं शब्दों और बिंबों के सहारे उन्होंने बताया है कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है।

'आत्मकथ्य' कविता छायावादी शैली में लिखी गई है। इसमें जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ और अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। यह कविता छायावादी लघुता के अनुरूप ही अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए लिखी गई है।

जयशंकर प्रसाद को 'कामायनी' काव्य कृति पर 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक' दिया गया। 'कामायनी' को आधुनिक हिंदी की सर्वश्रेष्ठ काव्य कृति माना जाता है, जिसमें मनु और श्रद्धा की कथा के माध्यम से मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है।

जयशंकर प्रसाद के साहित्य में इतिहास और दर्शन के प्रति गहरी रुचि दिखाई देती है। उनके साहित्य में छायावादी कविता की अत्यधिक कल्पनाशीलता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम और शैली की लाक्षणिकता प्रमुख हैं।

'आत्मकथ्य' कविता में कवि ने अपनी आत्मकथा लिखने से इनकार किया है। उनका मानना है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और रोचक मानकर लोग सराहना करें। इस कविता में कवि की विनम्रता और यथार्थवादी दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु 1937 में हुई। वे छायावादी काव्य धारा के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं - 'चित्राधार', 'कानन कुसुम', 'झरना', 'आँसू', 'लहर' और 'कामायनी'।

जयशंकर प्रसाद के उपन्यास हैं - 'कंकाल', 'तितली' और 'इरावती'। ये उपन्यास हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और इनमें मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

'आत्मकथ्य' कविता में कवि ने लंबे, सुंदर और नवीन शब्दों और बिंबों का प्रयोग किया है। इन्हीं शब्दों और बिंबों के सहारे उन्होंने बताया है कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है। इस कविता में छायावादी शैली की सभी विशेषताएँ मौजूद हैं।

जयशंकर प्रसाद का हिंदी साहित्य में अत्यधिक महत्व है। वे छायावादी काव्य धारा के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी कृतियाँ जैसे 'कामायनी', 'आँसू', 'लहर' आदि हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। उनके साहित्य में जीवन की कोमलता, माधुर्य, शक्ति और आकांक्षा का सुंदर चित्रण मिलता है।

'आत्मकथ्य' कविता में कवि की विनम्रता और यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रमुख है। कवि ने इस कविता में अपने जीवन की साधारणता को स्वीकार किया है और यह बताया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और रोचक मानकर लोग सराहना करें।

जयशंकर प्रसाद की कविताओं में प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम, जीवन के यथार्थ और अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति जैसे भाव पाए जाते हैं। उनकी कविताएँ छायावादी शैली में लिखी गई हैं, जिनमें सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण और शैली की लाक्षणिकता प्रमुख हैं।

'आत्मकथ्य' कविता में कवि ने अपने जीवन को एक सामान्य व्यक्ति के जीवन के रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और रोचक मानकर लोग सराहना करें। इस कविता में कवि की विनम्रता और यथार्थवादी दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

जयशंकर प्रसाद के नाटकों की विषयवस्तु मुख्य रूप से ऐतिहासिक है। उन्होंने 'अजातशत्रु', 'चंद्रगुप्त', 'स्कंदगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे नाटकों में भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। ये नाटक हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

जयशंकर प्रसाद की कविताओं में छायावादी शैली का प्रयोग हुआ है। इस शैली में कवि ने प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम, जीवन के यथार्थ और अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। उनकी कविताओं में सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण और शैली की लाक्षणिकता प्रमुख हैं।

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